अंतर्राष्ट्रीय नशा निवारण दिवस

राजनांदगांव। दिनाँेक 26/06/2021 को समाजशास्त्र विभाग द्वारा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. आई.आर.सोनवानी के कुशल मार्गदर्शन में शासन के निर्देशानुसार, अपने छत्तीसगढ़ को विकसित राज्य बनाने, अपने परिवार में हर्षोल्लास के साथ रहने, तन,मन,धन को सुदृढ़ बनाने, पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए समाज के सभी वर्गों के व्यक्तियों में नशापान के दुष्परिणामों को प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से महाविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय नशा निवारण दिवस ऑनलाईन/ऑफलाईन के माध्यम से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कार्यक्रम का आयोजित किया गया।
इस कार्यक्रम में सर्वप्रथम विभागध्यक्ष डॉ. एलिजाबेथ भगत द्वारा अधिकारियों/कर्मचारियों तथा ऑलर्नइान के माध्यम से जुड़े विद्यार्थियों का स्वागत करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नशा निवारण की आवश्यकता पर जोर दिया और बताया कि पूरे विश्व में आज नशीली वस्तुओं और नशीली पदार्थों के सेवन की समस्या अत्यंत गंभीर बन गई है क्योंकि नशीली पदार्थों का सेवन केवल पुरूषों तक ही सीमित नहीं है बल्कि महिालाओं में भी ये समस्याऐं निरंतर बढ़ती जा रही है जिसका भयंकर दुष्परिणाम देखने को मिल रहा हैं। आज कम उम्र के लड़के, युवा छात्र/छात्राएँ जवान हो या प्रौढ़ यहां तक कि वृद्ध व्यक्ति भी नशे की गिरफ्त में आते जा रहें है। केवल संयुक्त राज्य अमेरिका, जो विकसित देशों में गिना जाता है की स्थिति का आंकलन करें तो वहाँ 08 करोड़ लोग किसी न किसी नशीले पदार्थों के सेवन के आदि हैं, 25000 लोगों की मृत्यु प्रतिवर्ष इसी के कारण हो जाती है वहीं 50000 लोग किसी न किसी दुर्घटना के शिकार होते हैं। विकसित देशों में 70 प्रतिशत पुरूष और 60 प्रतिशत महिलाऐं नशे की आदि हैं, फलस्वरूप तलाक, अपराध, गंभीर अपराध, आत्महत्या तथा पारिवारिक कलह जैसे मामले बढ़े हैं।
यदि भारत की बात करें तो यहां और ही ज्यादा नशापान के गंभीर मामले देखने को मिल रहे है। प्रतिवर्ष 100 अरब रूपये केवल शराब पर व्यय होते हैं। 80 लाख गैलन शराब की खपत प्रतिदिन होती है। सस्ती शराब और जहरीली शराब सैकड़ों लोगों की जान ले चुकी है। प्रतिवर्ष हजारों लोग दुर्घटना के शिकार हो रहे है। नशीली दवाओं, नशीली पदार्थों तथा नशीली वस्तुओं की सेवन की समस्या आज विकराल बनती जा रही है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में 07 दिसम्बर 1987 को यह प्रस्ताव पारित किया कि 26 जून को प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय नशा निवारण दिवस के रूप में मनाया जाए। जिसको उद्देश्य यह है-

  1. लोगों में नशे के विरूद्ध चेतना फैलाना।
  2. नशे के आदि लोगों के उपचार की दिशा में कार्य करना।
  3. नशीली पदार्थों की तस्करी तथा उत्पादन पर अंकुश लगाना आदि।
    विभागाध्यक्ष ने नशापन के दुष्परिणाम पर विस्तार पूर्वक चर्चा किया और इसकी रोकथाम के लिए परिवार की भूमिका को प्राथमिक उपचार हेतु अहम बताया और परिवार में नैतिक मूल्य की स्थापना पर जोर दिया।
तत्पश्चात हिन्दी विभाग के सहायक प्राध्यापक मुरारी उपाध्याय ने ‘‘नशा नाश की जड़ है इसकी पीड़ा अति दुखदायी’’ जैसे संदेश से शुरूआत करते हुए कहा कि इस समस्या से समाज को कैसे बचाये ? कैसे हमारा देश नशा मुक्त देश बन सकता है? इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर अपनी बात रखी जैसे-
  • परिवार में माता-पिता को ही बच्चों को नैतिक शिक्षा देना है।
  • बच्चों को अनावश्यक पैसे न दें अर्थात च्वबामज डवदमल के नाम से बच्चों को अनावश्यक पैसे देने की आदत न डाले।
  • बच्चों की संगती पर ध्यान दें कि वे किनसे मिलते है? वे कहां जाते है?
  • क्या-क्या नशीली चीजें हैं और उनका दुष्परिणाम क्या होता हैं जरूर बताये।
  • बच्चों को बचपन से ही अच्छे कामों में व्यस्त रखें और नैतिक शिक्षा जरूर दें तभी हमारा समाज नशा मुक्त समाज बन सकता है।

तत्पश्चात इतिहास विभाग की विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. फुलसो राजेश पटेल ने समाज में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति क्यों है? और कैसे रोका जा सकता है? इस पर ग्रामीण परिवेश का उदाहरण देकर कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में नशापान की प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है जिसका कारण शिक्षा की कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में शराब पीना एक परम्परा के रूप में है तथा बच्चों को स्वाद के रूप में चखने के नाम से जाने अन्जाने नशे की दिशा में जाने से नहीं रोकते है। इसके दुष्परिणामों की गंभीरता को ग्रामीण क्षेत्रों के लोग नहीं समझ पा रहें हैं। इसलिए शिक्षा और समाजिक जागरूकता जैसे कार्यक्रमों की आज ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यंत आवश्यक है। डॉ. पटेल ने ये भी कहा कि हम सभी का आज परम कर्तव्य है कि चाहे शहर हो या गांव यदि समृद्ध भारत और स्वस्थ्य समाज चाहते हैं तो अपने-अपने स्तर पर इस समस्या को दूर करने के लिए पहल करना होगा।

तत्पश्चात महाविद्यालय के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा संकल्प पत्र के सभी बिन्दुओं को एक साथ पढ़ा गया और शपथ लिया गया तथा शपथ पत्र भरा गया। अंत में महाविद्यालय के ग्रंथपाल सीमा ए. लाल द्वारा कार्यक्रम में उपस्थित सभी अधिकारियों, कर्मचारियों तथा ऑनलाईन के माध्यम से सम्मिलित विद्यार्थियों का धन्यवाद एवं आभार व्यक्त किया गया।

इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों के अलावा मुख्य रूप से डॉ. फुलसो राजेश पटेल, इतिहास विभाग, सीमा ए. लाल, गं्रथपाल, हिन्दी विभाग के सहायक प्राध्यापक मुरारी उपाध्याय, सीमा पंजवानी, अंग्रेजी विभाग, मोनिका महोबिया एवं मोनिका देवांगन गणित विभाग, ऑफिस स्टॉफ से नितिन शान्डिल्य, सोमेश्वर साहू, ओमहरि, श्रीमती उमा हिड़ामे, राजेश वर्मा आदि कोविड-19 प्रोटोकाल का पालन करते हुए कार्यक्रम में अपनी सहभागिता दर्ज की।

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