भारत की सामाजिक व्यवस्था प्राचीन से मौर्य काल पर व्याख्यान
राजनांदगांव। शासकीय शिवनाथ विज्ञान महाविद्यालय, राजनांदगांव में दिनांक 25.03.2022 को महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. निर्मला उमरे के निर्देशन एवं इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ0 फुलसो राजेश पटेल के नेतृत्व में अतिथि व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर डॉ. आई.आर. सोनवानी (इतिहास) सेवानिवृत्त प्राचार्य विषय विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित हुए। डॉ. सोनवानी ने भारतीय इतिहास के प्राचीन भारत में सामाजिक व्यवस्था विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्राचीन काल सप्तसैंधव काल की समाजिक व्यवस्था पूर्णतः इतिहाकारों के उल्लेखित विचारों पर आधारित समाज समानता पर आधारित था। कालांतर में आर्यो का बाहर से आगमन हुआ। सैंधव सभ्यता द्रविड़ सभ्यता पर आधारित रहा है वे शांतिप्रिय थे, युद्ध कौशल से अनभिज्ञ थे और युद्ध सामाग्री अस्त्र-शस्त्र से परिचित नहीं थे। आर्य मूलतः द्रविड़ों को पराजित करके आर्य सभ्यता की स्थापना किये सप्तसैंधव प्रदेश को आर्यकरण मंे परिवर्तित कर उत्तर भारत में धीरे-धीरे आर्य संस्कृति सभ्यता का तेजी से विकास हुआ और इस सभ्यता को आर्यव्रत कहा गया।
आर्य सभ्यता में वेदों की रचना होने के कारण वैदिक युग के नाम से जाना जाता है। पूर्व वैदिक युग में नारी का समाज में उच्च स्थान प्राप्त था, कई विदुषी महिलाएं शास्त्रार्थ, यज्ञ, आहुति, धर्म-कर्म में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर कीर्तिमान स्थान हासिल की है। शास्त्रार्थ में ऋषि मुनियों और विद्वावानों को भी चुनौती दी है। उŸार वैदिक युग के उत्तरार्द्ध में नारियों की स्थिति में गिरावट आई है। उत्तर वैदिक युग के उपरांत दैविक उत्पत्ति के सिद्धांत पर समाज को चार वर्णों में विभक्त किया गया जन्म से कर्म का बंधन डाला गया था। इस सिद्धांत के आधार पर व्यक्ति अपने पंसद से कर्म का चयन नहीं कर सकता था। जिस जाति में जन्म लेता था उस कर्म को करना ही पड़ता था इस पर इन्होंने तीखा प्रहार किया। मनु द्वारा उल्लेखित मनुस्मृति के विधान पर आधारित सामाजिक व्यवस्था के तहत स्त्रियों की दयनीय स्थिति का भी वर्णन किया। मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियों पर सामाजिक बंधन डाला गया।
छठी शताब्दी ई.पूर्व में बौध धर्म का जन्म गौतम बुद्ध के द्वारा स्थापित किया गया जिसमें उन्होंने समस्त सामाजिक कुरीतियों को दूर कर स्त्री पुरूष की असमानता को समाप्त करते हुए महिलाओं को भी आगे आने के लिए प्रेरित किया। इनकी सामाजिक मान्यता को स्थापित किया। विचार व्यक्त करने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए धर्म कर्म में आगे आई। मौर्ययुग के सामाजिक व्यवस्था पर सविस्तार अपने विचारों को प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर महाविद्यालय के समस्त कला संकाय के विद्यार्थी एवं प्राध्यापकगण डॉ. एलिजाबेथ भगत, श्री गुणवंता खरे, श्री कपिल सूर्यवंशी उपस्थित थे।